नमस्कार दोस्तों,
आज आप सब के लिए एक ऐसे व्यक्ति Milkha Singh की सम्पूर्ण जीवन कहानी लेकर आया हूं जिनके बारे में आप सब जानते होंगे लेकिन जो उन्होंने संघर्ष किया वो नहीं जानते होंगे।
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मिल्खा सिंह का जन्म 20 नवम्बर 1929 को गोविंदपुर, पंजाब (अभी पाकिस्तान में है) में एक गरीब सिक्ख जाट परिवार में हुआ था। वो बचपन में बहुत से कठिनाइयों का सामना करते हुए आगे बढ़ रहे थे तभी उनके साथ एक ऐसी घटना हो जाती है जो दुनिया ही बदल देती है.
जब अंग्रेजों ने हिंदुस्तान को विभाजन कर दिया उस समय देश में अफरा तफरी मच गई लोग तय नहीं कर पा रहे थे की कहां रहें उसी में मिल्खा सिंह के माता पिता और भाई बहन की जान चली गई अब ये अकेले बच गए थे पूरे परिवार तब इन्होंने यह तय कर लिया था की मुझे इस ईश्वर ने बचाया है तो कुछ बड़ा करने के लिए ही बचाया है तो इन्होंने ये तय किया की मैं भारत जाऊंगा और उन्होंने किसी तरह ट्रेन पकड़ कर भारत आ गए।
Milkha Singh भारतीय सेना में जाने की इच्छा
मिल्खा सिंह लंबे और सुडौल शरीर के थे तो उनकी इच्छा सेना में भर्ती होने की थी तो उन्होंने बहुत बार प्रयास किया लेकिन सफलता नहीं मिल रही थी अंततः साल 1952 में भारतीय सेना में विद्युत मैकनिकल इंजीनियरिंग शाखा में शामिल हो गए। एक दिन सशस्त्र बल के कोच हविलदार गुरुदेव सिंह ने मिल्खा सिंह को दौड़ के लिए प्रेरित किया तब से वो अपना अभ्यास कड़ी मेहनत के साथ जारी रखा।
कुछ प्रियोगिता में भाग लेते रहे जीतते भी थे किंतु पहचान नहीं मिली थी। वर्ष 1956 में पटियाला में हुए राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता आयोजित किया गया था उसमें सुर्खियों में रहे तब से विश्व में एक नाम आया मिल्खा सिंह का फिर इन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा और आगे बढ़ते चले गए।
इनके वैवाहिक जीवन की बात करें तो इनकी शादी निर्मल कौर से हुई, जो कि साल 1955 में भारतीय महिला वॉलीबॉल टीम की कप्तान थी। साल 1962 में दोनों ने शादी कर ली। शादी के बाद 4 बच्चे हुए, जिनमें 3 बेटी और एक बेटा है। बेटे का नाम जीव मिल्खा सिंह है।
Milkha Singh “फ्लाईंग सिक्ख” की उपाधि
मिल्खा सिंह को “फ्लाइंग सिक्ख” कहा गया इसकी कहानी भी कुछ दिलचस्प है हुआ यूं था की वर्ष 1960 में रोम ओलंपिक में पदक से चूक गए जिसका खासा मलाल मिल्खा सिंह को था। इसी साल पाकिस्तान में हो रहे इंटरनेशनल एथलीट प्रतियोगिता का आयोजन होना था जिसमें भाग लेने के लिए इनको आमंत्रित किया गया था लेकिन पाकिस्तान ने जो दर्द दिया था उससे इनको जाने का मन नहीं हो रहा था लेकिन भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री नेहरू जी के समझने पर पाकिस्तान जाने के लिए राजी हो गए।
पाकिस्तान के उस समय का सबसे मशहूर एथलेटिक्स अब्दुल खालिक था यह उस समय का पाकिस्तान सबसे बड़ा खिलाड़ी था और विश्व में भी नाम था यहां मुकाबला भी अब्दुल खालिक और मिल्खा सिंह का ही था जो काफी दिलचस्प बना रहा था लेकिन पूरे स्टेडियम और पाकिस्तान में यही चर्चा हो रही थी की अब्दुल खालिक के सामने Milkha Singh नहीं टिक पाएगा और मिल्खा सिंह हार जाएगा। लेकिन वो कहावत जानते हैं न…
मंजिल उन्ही को मिलती है,जिनके सपनो में जान होती है!!
पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है!!
मिल्खा सिंह की भी हौसला इतना बढ़ा हुआ था की उनके सामने कितने भी बड़े खिलाड़ी उस समय क्यूं न आ जाते इनकी जीत पक्की थी यहां भी उन्होंने आसानी से जीत दर्ज किया और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान ने कहा की तुम दौड़े नहीं बल्कि उड़े हो इसलिए आज से मैं तुम्हे फ्लाइंग सिक्ख कहकर बुलाएंगे.
इसके बाद से से ही मिल्खा सिंह का नाम दुनिया भर में मशहूर हो गया और दुनिया में अपने नाम के साथ देश का नाम भी उच्चा किया।खेलों में उनके अतुल्य योगदान के लिये भारत सरकार ने उन्हें भारत के चौथे सर्वोच्च सम्मान ‘पद्मश्री’ से भी सम्मानित किया।
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Milkha Singh के रिकॉर्ड
- 1958 में कार्डिफ में हुए 440 yards में स्वर्ण पदक विजेता
- 1958 में टोकियो में 200m में स्वर्ण पदक विजेता
- 1958 में टोकियो में 400m में स्वर्ण पदक विजेता
- 1962 में जयकारता में 400m में स्वर्ण पदक विजेता
- 1962 में जयकारता में 1600m में स्वर्ण पदक विजेता
- 1958 में कटक में 200m में स्वर्ण पदक
- 1958 में कटक में 200m में स्वर्ण पदक
- 1964 में कटक में 200m में रजत पदक
Milkha Singh का खेल निर्देशक के रूप में सेवा
सेवानिवृत्ति के बाद Milkha Singh खेल निर्देशक, पंजाब के पद पर थे। मिल्खा सिंह ने बाद में खेल से सन्यास ले लिया और भारत सरकार के साथ खेलकूद के प्रोत्साहन के लिए काम करना शुरू किया। वे चंडीगढ़ में रहते थे। जाने-माने फिल्म निर्माता, निर्देशक और लेखक राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने वर्ष 2013 में इनपर भाग मिल्खा भाग नामक फिल्म बनायी, ये फिल्म बहुत चर्चित रही।
‘उड़न सिख’ के उपनाम से चर्चित मिल्खा सिंह देश में होने वाले विभिन्न तरह के खेल आयोजनों में शिरकत करते रहते थे। हैदराबाद में 30 नवंबर,2014 को हुए 10 किलोमीटर के जियो मैराथन-2014 को उन्होंने झंड़ा दिखाकर रवाना किया।
Milkha Singh का निधन
पूर्व भारतीय लीजेंड स्प्रिंटर मिल्खा सिंह का निधन कोरोना रिकवरी के दौरान 18 जून, 2021 को रात 11:30 बजे हुआ। वे 91 साल के थे। पाँच दिन पहले उनकी पत्नी निर्मल कौर का कोविड कॉम्प्लिकेशंस के कारण निधन हो गया था। मिल्खा सिंह का चंडीगढ़ के पीजीआईएमईआर में 15 दिनों से इलाज चल रहा था। उन्हें 3 जून, 2021 को ऑक्सीजन का लेवल गिरने के कारण आईसीयू में भर्ती कराया गया था। 20 मई, 2021 को उनकी कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी।
मिल्खा सिंह अंतिम इच्छा
मिल्खा सिंह को जीवन में एक ख्वाहिश थी की अपने देश भारत में कोई दूसरा मिल्खा नहीं पैदा लिया जब रोटरी क्लब के आशीर्वाद समेलन में कहा की मुझे दुःख है कि इस 125 करोड़ की जनसंख्या वाले देश में अभी तक कोई दूसरा मिल्खा पैदा नहीं लिया। मिल्खा सिंह हमेशा कहा करते थे कि जितनी भूख हो उससे कम खाना खाइए ताकि रक्त का संचार शरीर में तेज रहे जिससे कोई बीमारी न हो क्योंकि सारी बीमारी पेट से ही शुरू होती है खून शरीर में तेज दौड़ेगा तो बीमारी शरीर से बाहर हो जायेगी।
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