Jivan Ki Sachi Kahani आज आप सब के बीच प्रस्तुत कर रहा हूं जिसका मुख्य शीर्षक है “कन्यादान क्यों” तो आइए पढ़ते है पूरी कहानी..
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Jivan Ki Sachi Kahani (जीवन की सच्ची कहानी)
मनुष्य जीवन में वैसे तो दान का बहुत बड़ा महत्व है चाहे किसी भी धर्म को मानने वाले लोग हों वे अपने अपने स्तर पर दान करते हैं इस सम्बंध में इस्लाम धर्म के संस्थापक हजरत मोहम्मद साहब ने भी कहा था कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी आय का ढाई प्रतिशत भाग जरूर दान में देना चाहिए.
इसी प्रकार बौद्ध धम्म के संस्थापक तथागत बुद्ध ने भी गृहस्थों से दान करने की बात कही थी तथा बाबा साहेब अंबेडकर का भी सन्देश था कि अपनी आय का पांच प्रतिशत भाग समाज हित में दान जरूर करना चाहिए लेकिन किसी भी महापुरुष ने यह नहीं कहा था कि अपनी बहन या बेटी को दान करना चाहिए।
स्वाभाविक बात है कि दान करने के बाद उस पर हमारा किसी भी प्रकार का अधिकार नहीं रहता है मान लेते हैं कि हमने किसी व्यक्ति को दान में वस्त्र भेंट कर दिए अब दान करने के बाद उन वस्त्रों पर हमारा कोई अधिकार नहीं रहता है चाहे वह व्यक्ति उन वस्त्रों को स्वयं पहने या अन्य किसी को पहनने को दे अथवा बिक्री करे।
बेटी का दान या कन्यादान क्यों ?
हमारी बहन अथवा बेटी को भी जब हम दान कर देते हैं तो उसे दूसरे को सौंपने या बिक्री करने पर क्या हम चुप रहेंगे ? कोई समय था जब बेटे और बेटी में अंतर किया जाता था लेकिन आजकल बेटी और बेटे को समान समझा जाता है तो फिर बेटी का कन्यादान क्यों ?
तथागत बुद्ध के उपदेश को बाबा साहेब अंबेडकर ने अपने ग्रन्थ बुद्ध और उनका धम्म में लिखा है कि किसी बात को केवल इसलिए मत मानो कि वह परम्परा से चली आ रही है या बहुत से लोग उसे मानते हैं या फिर धर्म ग्रन्थों में लिखी हुई है अथवा किसी महापुरुष की कही हुई है। आप उसे तभी मानो की वह आपकी बुद्धि विवेक एवं अनुभव पर खरी उतरती हो।
Best Life Facts कान्यदान का इतिहास
अब इस कन्यादान की परंपरा के इतिहास पर भी नजर डालना जरूरी है कि एक समय ऐसा था कि ढोंग और पाखंड को बढ़ावा देने के लिए बहुत से लोग युवा अवस्था में ही सन्यासी बनकर मंदिरों में चले जाते थे लेकिन युवावस्था में होने के कारण अपनी हवस पर काबू नहीं कर पाते थे. तब अपनी हवस को मिटाने के लिए कन्यादान का षड्यंत्र रचा गया था और जनता को बेवकूफ बनाने के लिए कहा था.
मंदिरों में भगवान की सेवा ठीक से नहीं हो पा रही है इसलिए भगवान की सेवा के लिए देवदासी के रूप में अपनी कन्याओं को दान करोगे तो भगवान तुम्हारी मुरादें पूरी करेंगे और जो भी मन्नत मांगने पर वह अवश्य पूरी होगी साथ में उस कन्या की परवरिश के लिए आस पड़ोस एवं रिश्तेदारों द्वारा वस्त्र या नकद राशि दान में भी देनी चाहिए।
उस वक्त अशिक्षित लोग हुआ करते थे इसलिए इन पाखंडियों के षड्यंत्र को समझ नहीं सके और उनकी बात मानकर भगवान की सेवा में मंदिरों में कन्याओं का दान करने लगे साथ में उसकी परवरिश के लिए वस्त्र और नकद राशि रिश्तेदारों के द्वारा दान में दी जाने लगी। जब दान में दी गई कन्याओं की उम्र 16 वर्ष के करीब होने को आती तो उनके साथ वे पाखंडी पुजारी लोग दुराचार करके अपनी हवस मिटाते थे।
जब उन देव दासियों की कोख से पुजारियों की नाजायज औलाद पैदा होती थी तो बड़ा होने पर उन्हें हरि की औलाद अथवा हरिजन कहा जाता था। बाद में यही शब्द गांधीजी ने SC समाज को देना उचित समझा। मंदिरों में देवदासियों का बाहुल्य हो जाने पर बाद में उन्हें वैश्या बनाकर कोठों पर भेज दिया जाता था और उनसे पैदा हुए बच्चों को दलाल बनाकर कोठों की देखरेख करने की जिम्मेदारी दे दी जाती थी।
सच्चाई को समझे बिना आजतक भी कन्यादान की परंपरा चली आ रही है जो कि उचित नहीं है।समझने वाली बात यह है कि जब बेटी-बेटा एक समान हैं तो फिर बेटी का कन्या दान क्यों ?
इस सच्चाई को समझने के बाद प्रत्येक जागरूक व्यक्ति को संकल्प करना चाहिए कि भविष्य में कभी भी कन्यादान नहीं करूंगा।