एक ऐसे भारतीय योद्धा जिन्होंने अपने दुश्मन को अपने बुद्धि और देश प्रेम से रौंद दिया Vikram Batra Life Story In Hindi की अनसुनी कहानी लिखने जा रहा हूं आप सब की आशीर्वाद का अकांछी हूं।
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हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले छोटे शहर पालनपुर के रहने वाले जी० एल ० बत्रा और कमलकांता बत्रा के घर जन्म लिए ऐसे वीर योद्धा विक्रम बत्रा जिन्होंने कम हीं दिनों में ऐसा काम किया जिससे पूरे देश को उनके और उनके माता पिता पर गर्व है जिन्होंने ऐसे शेर बेटा पैदा किए.
कमलकांता बत्रा श्रीराम और हनुमान की बहुत गहरी श्रद्धा रखती थीं उनके दो पुत्री/बेटी थी तो उन्होंने प्रभु श्रीराम से एक पुत्र की कामना की जिसे ईश्वर ने उनको ये मनोकामना दो पुत्र देकर पूरा किया जिनका पुकारू या घरेलू नाम लव और कुश रखा लव यानी विक्रम बत्रा और कुश यानी विशाल बत्रा.
“लहराते तिरंगे के पीछे आऊंगा या तिरंगे में लिपटा हुआ आऊंगा“
कैप्टन विक्रम बत्रा
1. विक्रम बत्रा का जन्म कब और निवास स्थान कहां था ?
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के छोटे शहर पालनपुर में रहने वाले विक्रम बत्रा का जन्म जी० एल० बत्रा और कमलकांता बत्रा के घर 09 सितंबर 1974 ई० को दो जुड़वां बच्चे का जन्म हुआ जिनका नाम विक्रम बत्रा और दूसरे का नाम विशाल बत्रा रखा गया।
2. विक्रम बत्रा की गर्लफ्रेंड,भाई और बहन का नाम क्या है ?
विक्रम बत्रा की दो बड़ी बहन और एक छोटा भाई विशाल बत्रा है उनकी गार्लप्रंड थी जिनका नाम डिंपल चीमा है। डिंपल और विक्रम की शादी होने वाली थी।
विक्रम बत्रा और डिंपल चीमा दोनों एक दूसरे से बेहद प्यार करते थे दोनों करीब 4 वर्ष तक साथ रहें थे।
3. विक्रम बत्रा का प्राम्भिक जीवन कैसा रहा ?
विक्रम की प्रारंभिक जीवन आम लोगों की तरह था उनकी शुरुवाती पढ़ाई DAV School में हुई इसके बाद वो Central School पालनपुर में इनकी दाखिला हो गई वहीं से इनके अंदर देशप्रेम की चिंगारी इनके अंदर उठी।
बारहवीं करने के बाद चंडीगढ़ चले गए और वहीं से उन्होंने DAV College से विज्ञान से स्नातक की पढ़ी पूरी की और पढ़ी के दौरान NCC के सर्वश्रेष्ठ कैडेट चुने गए और गणतंत्र दिवस की परेड में भाग लेने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
विक्रम का दिल अब सेना के लिए धड़कने लगा तो उन्होंने सायुंक्त रक्षा सेवा परिक्षा (CDS) की तैयारी शुरु कर दी इस दौरान उनकी हांगकांग में मर्चेंट नेवी की नौकरी लग गई घर वालों ने सब तैयारी कर दी प्लेन का टिकट भी बनकर आ गया लेकिन अंतिम समय में इन्होंने जाने से मना कर दिया और भारतीय सेना के रूप में देश सेवा करने का नारी लिया।
4. विक्रम बत्रा की सैन्य जीवन कैसा रहा ?
CDS की परीक्षा पास करने के बाद जुलाई 1996 में भारतीय सैन्य अकादमी देहरादून में प्रशिक्षण प्राप्त किया और 6 दिसंबर 1997 को 13 जम्मूकश्मीर राइफल्स में सपोर जगह पर लेफ्टिनेंट कर्नल के पद पर तैनात हुए।
उन्होंने 1999 में कमांडो प्रशिक्षण के साथ साथ बहुत तरह के सेना प्रशिक्षण प्राप्त किए। 01 जून 1999 को विक्रम बत्रा और इनकी टुकड़ी को कर्नल योगेश जोशी के अंडर कारगिल युद्ध में भेजा गया वहां उन्होंने हम्प और राकी नाब जितने के बाद विक्रम बत्रा को कैप्टन बना दिया गया।
5. कैप्टन विक्रम बत्रा की उपलब्धि क्या है ?
भारतीय सेना के अधिकारी द्वारा जो भी जिम्मेदारी दी गई उसको उन्होंने बखूबी निभाया और जिस भी दुश्मन पर उनकी नजर गई उसपर पहाड़ बनकर टूट पड़े। इन्होंने अपने सूझ बूझ से और टुकड़ी की मदद के साथ हम्प, राकी स्थान को जीतने के बाद 5140 चोटी और 4875 चोटी पर तिरंगा फहराया।
6. विक्रम बत्रा शहीद कैसे हुए ?
देश के हरेक वो नागरिक जो अपनी मातृभूमि से प्यार करता है वो अपने दिल में कैप्टन विक्रम बत्रा के लिए सम्मान रखता है। वैसे सरकार ने इस अदम्य साहस और पराक्रम के लिए 15 अगस्त 1999 को तत्कालीन राष्ट्रपति श्री के० आर० नारायणन द्वारा मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया जो की 07 जुलाई 1999 से प्रभावी हुआ जिसे विक्रम बत्रा के पिता जी० एल ० बत्रा जी ने प्राप्त किया।
7. कैप्टन विक्रम बत्रा को कौन सा सम्मान मिला ?
देश के हरेक वो नागरिक जो अपनी मातृभूमि से प्यार करता है वो अपने दिल में कैप्टन विक्रम बत्रा के लिए सम्मान रखता है। वैसे सरकार ने इस अदम्य साहस और पराक्रम के लिए 15 अगस्त 1999 को तत्कालीन राष्ट्रपति श्री के० आर० नारायणन द्वारा मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया जो की 07 जुलाई 1999 से प्रभावी हुआ जिसे विक्रम बत्रा के पिता जी० एल ० बत्रा जी ने प्राप्त किया।
विक्रम बत्रा की ‘ये दिल मांगे मोर’ की कहानी (Vikram Batra Life Story In Hindi)
जब 5140 चोटी पर जीत दर्ज करने के लिए रणनीति कर्नल योगेश जोशी के नेतृत्व में बनाई जा रही थी कर्नल के साथ दो युवा कामंडिंग ऑफिसर थे लेफ्टिनेंट जामवाल और दूसरे लेफ्टिनेंट विक्रम बत्रा। ये भी जरूर पढ़े👉 फ्लाइंग सिक्ख मिल्खा सिंह जी सम्पूर्ण जीवनी को पढ़ें
दोनों ऑफिसर एक हीं चोटी पर दो तरफ से कब्जा करने वाले थे जो पहले पहुंच जाता और तिरंगा फहराया देता उसे अपने कामांडिग अधिकारी को कोडवर्ड में सूचना देना होता है। जब कर्नल जोशी ने लेफ्टिनेंट जामवाल से पूछा की तुम्हारा कोड क्या है तो उन्होंने जवाब दी ‘OAAA‘ ( जो सैन्य अकादमी का उद्घोष है)। और जब लेफ्टिनेंट बत्रा से पूछा गया तो उन्होंने जवाब दिया ‘Ye Dil Mange More‘.
जब कर्नल जोशी ने “ये दिल मांगे मोर” के बारे पूछा तो उन्होंने जवाब की एक जीत दर्ज करने से हमारी इच्छा पूरी नहीं होती जब तक मैं पूरी न जीत जाऊं।
20 जून 1999 को रात के 3 बज कर 20 मिनट पर चोटी 5140 पर विजय प्राप्त कर ली तब रेडियो के जरिए कैप्टन विक्रम बत्रा ने अपना विजय उद्घोष ये दिल मांगे मोर बोला और पूरे देश में सुबह-सुबह विक्रम बत्रा सेना ही नहीं बल्कि देश के हीरो बन गए।
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